सपाः धर्मेंद्र का टिकट कटवाया...फिर भी सही 'भाव' नहीं मिल पाया

सपाः धर्मेंद्र का टिकट कटवाया...फिर भी सही 'भाव' नहीं मिल पाया

खास बातें-

- सपा के कुछ नेता ही धर्मेंद्र का टिकट कटवाने का कारण बने

- अखिलेश यादव को सौंपा था पत्र, गिनाए थे हार के कारण

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बदायूं। जिले के कुछ सपा नेताओं ने धर्मेंद्र यादव के यहां से चुनाव लड़ने पर हारने के तमाम कारण अखिलेश यादव को गिनाकर उनका टिकट कटवाने में तो सफलता हासिल कर ली लेकिन अब ये नेता ही दुखी हैं क्योंकि उनको वो 'भाव' नहीं मिल रहा है, जिसकी उम्मीद वो धर्मेंद्र यादव का टिकट कटने के बाद पाले बैठे थे। इधर, शिवपाल यादव और उनके बेटे आदित्य यादव ने भी पांचों विधानसभाओं की कमान अपने हाथों में ले ली है, जिसके बाद ये नेता भी खुद को पैदल महसूस कर रहे हैं। 
                     

साल की शुरुआत में जब लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तो जनता मान रही थी कि सपा से धर्मेंद्र यादव ही प्रत्याशी होंगे। संघमित्रा मौर्य के अंदरूनी विरोध के चलते लोग उनकी जीत की राह भी इस बार आसान मान रहे थे। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी जनता की उम्मीदों को बनाए रखते हुए धर्मेंद्र को प्रत्याशी घोषित कर दिया था लेकिन तभी सपा के कुछ नेताओं ने उनका विरोध करते हुए अखिलेश यादव को पत्र सौंप दिया था। खास बात ये थी कि इनमें से कुछ ऐसे थे जो कभी धर्मेंद्र यादव के बहुत करीबी माने जाते थे। 

सूत्रों की माने तो इसकी रूपरेखा भी धर्मेंद्र का टिकट घोषित होने के बाद तुरंत नहीं बनी थीं बल्कि अखिलेश यादव को काफी पहले से ही उनकी हार के कथित कारण गिनाए जाने लगे थे। जब बात नहीं बनी तो लिखित पत्र सौंप दिया गया जो धर्मेंद्र यादव के टिकट कटने का आधार बना।

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शिवपाल बने प्रत्याशी तो फिर गया अरमानों पर पानी

बदायूं। अखिलेश यादव ने जब शिवपाल सिंह को बदायूं का प्रत्याशी घोषित किया तो इन नेताओं के अरमानों पर पानी फिर गया। जो नेता यह माने बैठे थे कि उनको 'भाव' मिलेगा, वे 'बे-भाव' हो गए हैं। क्षेत्र का मिजाज समझने के बाद शिवपाल सिंह यादव ने जहां सहसवान और गुन्नौर की कमान संभाल ली है तो वहीं आदित्य यादव तीनों अन्य विधानसभा क्षेत्रों पर नजर रखे हैं। चुनाव कोई भी लड़े लेकिन इतना तय है कि स्थानीय नेताओं को वो फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा, जिसकी वो उम्मीद पाले बैठे थे। 

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तो यादव और मुस्लिमों के भरोसे बैठी सपा ?

बदायूं। जानकार बताते हैं कि सपा प्रत्याशी शिवपाल सिंह और उनके बेटे आदित्य केवल यादव और मुस्लिमों के भरोसे चुनाव जीतने का गणित लगाए बैठे हैं। 19 लाख से ज्यादा कुछ वोटरों वाले इस लोकसभा क्षेत्र में करीब चार लाख यादव और करीब इतने ही मुस्लिम मतदाता हैं। यदि 55 से 60 प्रतिशत वोटिंग होती है तो भी केवल दोनों के भरोसे जीत की राह आसान नहीं होगी। दूसरी मुश्किल ये है कि धर्मेंद्र यादव के तमाम समर्थक उनका चुनाव लड़ाने आजमगढ़ में डेरा डाल चुके हैं और यहां सपा प्रत्याशी की काट करने वाले पार्टी के अंदर ही मौजूद हैं। ऐसे में सपा की राह में भी कांटे ही कांटे हैं। 

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प्रत्याशी जो भी हो, होगी मुश्किल

बदायूं। सपा ने भले ही शुरू में प्रत्याशी शिवपाल को घोषित किया हो, लेकिन शिवपाल कुछ दिन रुकने के बाद अपने बेटे आदित्य को ही प्रत्याशी बनाकर पेश कर रहे हैं। इसके पीछे उनकी मंशा आदित्य का राजनीतिक कॅरिअर शुरू करने की है। हाल ही में वह आदित्य को प्रत्याशी घोषित भी कर चुके हैं लेकिन अंतिम फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिेलश यादव पर छोड़ दिया गया है। वह ही आदित्य के प्रत्याशी बनने की अधिकृत घोषणा करेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि आदित्य ही यहां से चुनाव लड़ेंगे। 



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    Bjp matlov kuchh bho

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    किसानों का भुगतान होना चाहिए

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