बदायूं। लोकसभा चुनाव जैसे- जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे चर्चाओं का दौर भी बढ़ता जा रहा है। नेता अपने-अपने हिसाब से अपनी पार्टी की जीत का गणित लगाए बैठे हैं लेकिन जनता शांत है। इस बार किसी प्रत्याशी के पक्ष में जनता का उत्साह सिर चढ़कर नहीं बोल रहा है। लोगों की मानें तो भाजपा जहां मोदी के नाम पर जीतने के सपने देख रही है तो वहीं सपा नये शिगूफे छोड़कर चुनाव का रुख पलटने की कोशिश कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की देवचरा में रैली के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि बदायूं में भाजपा प्रत्याशी दुर्विजय सिंह इतने मजबूत हैं कि भाजपा उनकी जीत के प्रति आश्वस्त हैं, जिस कारण मोदी की रैली को बदायूं से हटाकर बरेली में शिफ्ट किया गया तो वहीं कुछ लोगों का कहना है बदायूं में भाजपा की हार पक्की है। चुनाव के बाद लोग यह न कहें कि मोदी के आने के बाद भी भाजपा बदायूं में हार गई, इसलिए मोदी की रैली को बदायूं से हटाकर बरेली कर दिया गया। इसे लोग निकाय चुनाव से भी जोड़ रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी के आने के बाद भी बदायूं से भाजपा प्रत्याशी दीपमाला गोयल निर्दलीय फात्मा रजा से हार गई थीं और बाद में लोग यही कहते दिखे कि योगी के आने का असर भी जनता पर नहीं पड़ा।
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सपा और भाजपा प्रत्याशी बाहरी तो चुनाव भी बाहर के ही लड़ा रहे
बदायूं। जीत और हार को लेकर सबके अपने-अपने कयास हैं लेकिन यह तय है कि सभी अपनी जीत के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि आम जनता से संवाद ही नहीं बना पा रहे। चुनावी बैठकें तो हो रही हैं लेकिन लीड बाहर के लोग ही कर रहे हैं। स्थानीय नेताओं को वह तबज्जो नहीं मिल पा रही। चर्चा है कि भाजपा प्रत्याशी के चुनाव की कमान जहां बरेली के लोग संभाल रहे हैं तो वहीं सपा प्रत्याशी का चुनाव सैफई के लोग डील कर रहे हैं।
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पूर्व विधायक और एक बड़े नेता के सपा में शामिल होने की बात अभी तक हवा-हवाई
बदायूं। पिछले दिनों पूर्व विधायक हाजी बिट्टन के सपा में शामिल होने के बाद एक और पूर्व विधायक समेत एक पूर्व मंत्री व जिले के कद्दावर नेता के सपा में शामिल होने की चर्चा जोर से चली थीं लेकिन अभी तक वह हवा-हवाई ही निकली है। उल्टा गुन्नौर क्षेत्र के एक नेता सपा छोड़कर भाजपा में जरूर शामिल हो गए।
राजनीति के जानकारों की मानें तो सपा भी केवल शिगूफे छोड़कर चुनाव का रुख पलटना चाह रही है लेकिन इससे होने वाला कुछ नहीं है, बल्कि उल्टा इससे सपा को नुकसान ही हो सकता है। जानकारों का कहना है कि सपा अभी तक स्थानीय मतदाताओं का रुख ही नहीं भांप पा रही है, ऐसे में ऐन मौके पर इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।