ये बदायूं के (अभि) नेता हैं...इन्हें गरीब की 'जान' नहीं, अमीर के 'माल' से ज्यादा प्यार है

ये बदायूं के (अभि) नेता हैं...इन्हें गरीब की 'जान' नहीं, अमीर के 'माल' से ज्यादा प्यार है

बदायूं। उझानी की मेंथा फैक्ट्री में आग लगी, मालिकों के अनुसार, करीब सौ करोड़ यानी एक अरब का नुकसान हुआ। बदायूं के तमाम नेता और जनप्रतिनिधि फैक्ट्री के मालिक के यहां सांत्वना देने पहुंचे, लेकिन जिस मुनेंद्र का आज तक पता नहीं चला, उसके घर कितने नेता गए, यह बड़ा सवाल है। 

बदायूं के नेताओं या यूं कहें 'अभिनेताओं' को गरीब की जान से ज्यादा अमीरों के माल से ज्यादा लगाव हैं। 'अभिनेता' इसलिए क्योंकि ये नेता संवेदना कम, संवेदना दिखाने का अभिनय ज्यादा करते हैं। हालांकि हमारे कहने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि हमारी संवेदना फैक्ट्री मालिक के साथ नहीं है, लेकिन जिस परिवार का सदस्य लापता हो गया हो, उसकी पूछने एक- दो नेताओं के अलावा कोई नहीं गया। 

परिवार का कोई सदस्य यदि मर जाता है तो घर वाले हफ्ता, दस दिन, एक महीने, दो महीने में यह सोचकर सब्र कर लेते हैं कि उसे कभी नहीं लौटना, लेकिन जिस घर के लोग अपने परिजन की जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे होते है, उसका दुख समझना आसान नहीं है। यही हाल मुनेंद्र के घर वालों का है। बहुत कम संभावना है कि उस हादसे में मुनेंद्र की जान बची हो, लेकिन उसके घर वालों को उसकी लाश भी नसीब न हो तो इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है। उस पर कोढ़ में खाज ये कि उन्हें वहां जाने पर दुत्कारा- फटकारा और जा रहा है। 

ऐसे में बदायूं के नेताओं और जनप्रतिनिधियों का केवल फैक्ट्री मालिक के घर जाकर संवेदना प्रकट करना वास्तव में उनकी संवेदनहीनता का परिचय देता है। क्या ऐसे समय पर नेताओं को मुनेंद्र के परिजनों के साथ नहीं खड़ा होना चाहिए था, क्या उन्हें ये प्रयास नहीं करना चाहिए था कि कैसे भी मुनेंद्र का जला-अधजला शव उसके परिवार वालों को मिल जाए, लेकिन नहीं....इन नेताओं को गरीब की जान से कोई लेना-देना नहीं। 

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...तो कहां गए बिहार के मजदूर

बदायूं। ये भी कहा जा रहा है कि फैक्ट्री में बिहार के भी काफी मजदूर काम करते थे जो उस समय वहां मौजूद थे, जब अग्निकांड हुआ था। यदि यह सही है तो उनके परिवार वालों को तो इस हादसे का पता तक नहीं होगा। यदि ये मजदूर भी उस आग में भस्म हो गए होंगे तो किसी का बेटा, किसी की पत्नी तो किसी के मां-बाप उसके अगले त्योहार पर लौटने की राह देख रहे होंगे। पर, इससे न किसी नेता को मतलब है न प्रशासन को। 

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परिवार वालों से मिला भाकियू का प्रतिनिधिमंडल

बदायूं। भारतीय किसान यूनियन टिकैत का प्रतिनिधिमंडल बरेली मंडल प्रवक्ता राजेश कुमार सक्सेना व सदर तहसील अध्यक्ष अर्जुन सिंह की नेतृत्व में मुनेंद्र के घर उसके गांव पहुंचा और उससे परिवार वालों से बात की। राजेश सक्सेना ने कहा कि मुनेंद्र का शव प्रशासन इतने दिन बाद भी खोज नहीं पाया है। यह प्रशासन की घोर लापरवाही है। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण की राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत को पूरी जानकारी दी जाएगी और उन्हें बदायूं के आंदोलन में बुलाया जाएगा। तहसील अध्यक्ष अर्जुन सिंह ने कहा कि जिस तरह प्रशासन काम कर रहा है यह संवेदनहीनता है। इस फैक्ट्री में बिहार के भी कई दर्जन मजदूर काम करते थे, वे कहां हैं। इस घटना में कई मजदूर मृतक हो सकते हैं। घटना को दबाया नहीं जा सकता। प्रतिनिधि मंडल में तहसील उपाध्यक्ष केसर अली, ब्लॉक अध्यक्ष सलारपुर पप्पू सैफी, फैयाज अली, ठाकुर कृष्ण पाल सिंह, हरचरण लाल वर्मा, सुरेश दीवान, सुनील यादव आदि मौजूद रहे। 

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भाकियू का आरोप-बचा हुआ मलबा निकाला जा रहा

बदायूं। भाकियू का आरोप है कि फैक्ट्री में मृतक को ढूंढने के लिए कोई कार्रवाई नहीं चल रही है। वहां से सिर्फ फैक्ट्री मालिक का बचा हुआ मलबा निकाला जा रहा है। अच्छे-अच्छे पुर्जों को निकालकर बाहर भेजा जा रहा है। मंडल प्रवक्ता राजेश कुमार सक्सेना ने कहा कि शव को शीघ्र ढूंढकर परिवार वालों को सौंपा जाए, वरना बड़ा आंदोलन होगा। 

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- उझानी अग्निकांडः सब मजदूरों को बाहर निकाला तो कहां गया मुजरिया का मुनेंद्र !

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    Bjp matlov kuchh bho

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    आपकी सेवा... समर्पण,.. ईश्वर कृपा..

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    किसानों का भुगतान होना चाहिए

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