...तो क्या बदायूं के मेडिकल स्टोर्स पर भी खपाई गई हैं नकली दवाएं, लेते वक्त बरतें सावधानी
आगरा से बड़ी मात्रा में बरेली में सप्लाई की गई हैं नकली दवाएं, बदायूं भी अछूता नहीं
बदायूं। आगरा की नकली दवाएं बरेली के मेडिकल स्टोर्स में खपाने के बाद यह संभावना बढ़ गई है कि बदायूं में भी तो कहीं ऐसा नहीं किया गया। यदि ऐसा है तो ये लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। सूत्र बताते हैं कि शहर समेत जिले के कुछ मेडिकल स्टोर्स पर भी इन दवाओं की आपूर्ति की गई है।
आगरा शहर दवाइयों का गढ़ माना जाता है। होलसेल के अलावा कटिंग का भी काम यहां बड़े स्तर पर होता है। कटिंग पर माल लाकर व्यापारी विभिन्न शहरों में बेचते हैं और मोटा मुनाफा कमाते हैं। हाल ही में आगरा की बंसल व मां मेडिकल एजेंसी द्वारा बरेली के 12 मेडिकल स्टोर्स पर नकली दवाएं खपाएं जाने का खुलासा हुआ है। कुछ दिनों पहले औषधि विभाग की छापेमारी में बरेली से आगरा के इस कनेक्शन का खुलासा हुआ था।
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बदायूं में भी कुछ मेडिकल स्टोर्स पर मामला संदिग्ध
बदायूं। बताते हैं कि आगरा और बरेली से दवाएं लाने वाले कुछ मेडिकल स्टोर्स संचालकों के तार जुड़े हैं। ऐसे में यहां के भी कुछ मेडिकल संचालक शक के घेरे ें आ गए हैं। बताया जाता है कि इन स्टोर्स पर भी नकली दवाओं की आपूर्ति की गई है।
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असली-नकली दवाओं का हब है आगरा
बदायूं। दवाओ के मामले में आगरा हब माना जाता है। असली और नकली दवाएं यहां प्रचुरता में मिल जाती हैं। पिछले साल नवंबर-दिसंबर में एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स ने छापमारी कर करोड़ों की नकली दवाएं बरामद की थीं। इन दवाओं की पैकिंग असली दवाओं जैसी ही करवाई जा रही थी। इन दवाओं में आर्सेनिक और लेड की बड़ी मात्रा मिली थी। इन दवाओं की सप्लाई उत्तर प्रदेश के हर जिले में मौजूद दवा बाजार में की गई थी।
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जिनकी जितनी बिक्री, उतनी नकली दवाएं तैयार
बदायूं। विभागीय सूत्रों की मानें तो जिन दवाओं की बिक्री ज्यादा होती है, उनकी ही नकली दवाएं ज्यादा बनाई जाती हैं। इनमें गैस के लिए पैंटाप्रोजोल, बुखार के लिए डोलो, कालपोल, एलर्जी के लिए लिवोसिट्राजिन आदि वे दवाएं हैं, जिनकी बड़ी खेप नकली तैयार करके बाजार में सप्लाई की जाती हैं। चूंकि इस प्रकार की दवाएं मेडिकल स्टोर्स के अलावा गली मोहल्लों की किराने की दुकानों पर भी बिक जाती हैं, इसलिए इनका गोरखधंधा ज्यादा होता है।
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ऐसे पहचानें नकली और असली का भेद
बदायूं। हालांकि सामान्य आदमी के लिए असली और नकली दवा में फर्क करना काफी मुश्किल हो जाता है लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखकर इससे बचा जा सकता है। सबसे पहले तो विक्रेता से पक्का बिल जरूर लें। इस बिल में बैच नंबर अंकित होता है। कोई भी विक्रेता फंसने के डर से नकली दवा का बिल नहीं देगा। इसके अलावा नकली दवा की पैंकिंग असली से भिन्न होती है। कहीं-कहीं स्पेलिंग का भी अंतर होता है। किसी भी दवा का लगातार इस्तेमाल करने वाले लोग इस अंतर हो अच्छी तरह पहचान लेते हैं। दवा के अनुसार, कुछ घंटों या दो-तीन दिन दवा का असर नहीं दिखता तो भी दवा नकली हो सकती है।
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ऐसे हो सकता है नुकसान
बदायूं। डॉक्टरों के अनुसार, नकली दवाओं में आर्सेनिक और लेड भी रहता है, जिससे कैंसर भी हो सकता है। किडनी और लिवर पर भी ये दवाएं बुरा असर डालती हैं। नकली दवाओं से पेट में अल्सर जैसी समस्या हो सकती है।