सृजन साहित्यिक अभिरुचि मंच के तत्वावधान में किया गया काव्यगोष्ठी का आयोजन
बहजोई (संभल)। सृजन साहित्यिक अभिरुचि मंच के कृष्णा कुंज स्थित कार्यालय पर मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस बार की गोष्ठी एक विशेष संवेदनशील भावभूमि पर केंद्रित रही, जहां शब्दों के माध्यम से पहलगाम के मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई। भारतीय सेना के शौर्य को नमन किया गया और देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाएं प्रस्तुत की गईं।
साहित्यकारों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले में मारे गए भारतीयों को श्रद्धासुमन अर्पित किए, साथ ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारतीय सेना की ओर से करारे जवाब पर गर्व व्यक्त किया गया। गोष्ठी ने साबित कर दिया कि जब देश की बात हो, तो कविता केवल शब्द नहीं, एक जुनून बन जाती है और फिर श्रद्धांजलि, शौर्य और साहित्य एक साथ प्रवाहित होते हैं। विभिन्न जिलों से आए साहित्यकारों की सशक्त लेखनी ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया और खूब वाहवाही लूटी।
गोष्ठी का शुभारंभ पंवासा के वरिष्ठ साहित्यकार ज्ञानप्रकाश उपाध्याय ने वाणी वंदना से किया। उन्होंने अपनी कविता में आतंकियों को चेताया-
वार किया है धोखे से, इसका बदला हम लेंगे,
याद रखेगी सारी दुनिया, घर में घुसकर मारेंगे।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए दीपक गोस्वामी चिराग ने ‘सिंदूर की कीमत’ को शब्दों में यूं पिरोया-
युगों-युगों से है यही, भारत का दस्तूर,
रावण पर भारी पड़ा, सीता का सिंदूर।
संचालन कर रहे संभल के युवा साहित्यकार डा संदीप कुमार सचेत ने ओजस्वी अंदाज में कहा-
देश का सम्मान बचाने को, फिर अपनी शान दिखाई है,
देख ले मुर्दा मुल्क पड़ोसी, यह हिंदुस्तान की अंगड़ाई है।
बदायूं के युवा शायर अरशद रसूल ने अपनी पंक्तियों से ‘सिंदूर की कीमत’ को मार्मिक रूप दिया-
जवानों ने बढ़ा दी किस कदर सिंदूर की कीमत,
डरा-सहमा है दुश्मन, देखकर सिंदूर की कीमत।
हमारे देश का बलिदान ज़ाया हो नहीं सकता,
है चुटकी भर सही, देखो मगर सिंदूर की कीमत।
कासगंज की कवयित्री डा सुनीता शंकवार ने अपने भावों को यूं स्वर दिया-
सिंदूर अब सिंदूर से अंगार हो गया,
चिंगारियों की राशि का अंबार हो गया।
सिंदूर दहक उठा, ज्वाला गई पाक तक,
बलिदानों के बलिदान का श्रृंगार हो गया।
युवा कवि वेंकट कुमार ने कहा-
सिंदूर की कीमत बताने को, किया आपरेशन सिंदूर,
आतंकी आकाओं के सपनों को, किया है चकनाचूर।
चंदौसी की कवयित्री मनीषा गौतम ने मानव जीवन की क्षणभंगुरता को यूं उकेरा-
क्यों इतराता है तू सूरत पर अपनी बंदे,
पलक झपकते ही सब खाक हो जाना है।
गोष्ठी में रूपकिशोर गुप्ता, सत्यवीर उजाला, राजेश तन्हा, संभव जैन आदि ने भी काव्यपाठ किया। यहां अरविंद कुमार, राममूर्ति नाथ, अनुराधा गोस्वामी, वीरेन्द्र गोस्वामी, विमला देवी, वंश, वंशिका आदि साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।