मन की बात-
सब की बात न्यूज। सोशल मीडिया...यानी अभिव्यक्ति का वह अधिकार, जिसको प्रयोग करते वक्त दिमाग का उपयोग करने की जरूरत नहीं है। इसके बढ़ते प्रचलन से हर व्यक्ति 'बुद्धिजीवी वर्ग' में प्रवेश कर गया है, अब वह क्या लिख रहा है, क्यों लिख रहा है, उसका किसी पर क्या फर्क पड़ सकता है, इसकी उसे कोई परवाह नहीं रही है। इस सोशल मीडिया के दुरुपयोग या फिर मूर्खता भरे उपयोग ने एक उस मां की जान ले ली, जिसकी सात माह की बच्ची कुछ दिन पहले एक अपार्टमेंट की बालकनी में फंस गई थी और लोगों ने मशक्कत से उसकी जान बचा ली थी।
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सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी वीडियो
सब की बात। बीते 28 अप्रैल को सोशल मीडिया पर चेन्नई की एक वीडियो वायरल हुई थी। इसमें दिख रहा था कि एक अपार्टमेंट की बालकनी में करीब सात माहं की बच्ची फंस गई थी, जिसे जद्दोजहद करके कुछ लोग बचाने का प्रयास कर रहे थे। वीडियो देखने वालों को नीचे दिए गए फोटो को देखने के बाद वह वाकया जरूर याद आ जाएगा।
लोगों ने बच्ची को तो बचा लिया लेकिन उसके बाद जो हुआ वह काफी सोचने को मजबूर करने वाला है। दरअसल, यह वीडियो चेन्नई की महिला राम्या की सात माह की बेटी का था। 28 अप्रैल को बच्ची किसी तरह अपार्टमेंट की बालकनी से फिसलकर गिर गई थी और बीच में फंस गई थी। बच्ची को निकालने का वीडियो जब वायरल हुआ तो सोशल मीडिया पर लोगों ने राम्या को ट्रोल करना शुरू कर दिया। इन ट्रोलर्स ने न तो वजह जानी, न ही उन्हें यह पता था कि बच्ची के गिरने का कारण क्या था, लेकिन उन्हें तो बस कमेंट करके मां को लापरवाह बताना था। कुछ ने तो उसे गालियां तक लिखीं। इन कमेंट्स से राम्या इतनी आहत थी कि वह अवसाद में आ गई। अवसाद बढ़ा तो अपार्टमेंट से निकलकर वह अपने कोयम्बटूर स्थित मायके आ गई लेकिन ट्रोलर्स ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। इससे वह इतना परेशान हुई कि उसने अपनी जान देकर इन ट्रोलर्स से पीछा छुड़ाने का निर्णय ले लिया और अपने मायके में फांसी लगाकर जान दे दी। राम्या के परिवार में उसका पति वेंकटेश, चार साल का बेटा और सात महीने की बच्ची है। बताते हैं कि राम्या एक आईटी कंपनी में कार्यरत थी। पढ़ी लिखी और आत्मनिर्भर होने के बाद भी वह ट्रोलर्स को नहीं झेल सकी।
आखिर कहां ले जा रहा सोशल मीडिया
सब की बात। भले ही ट्रोलर्स के कारण राम्या की जान चली गई लेकिन इससे उन तथाकथित ट्रोलर्स को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। उनका 'अधकचरा' ज्ञान ऐसा ही रहेगा, लेकिन इससे एक हंसता खेलता परिवार जरूर टूट गया। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ट्रोलर्स की इस आजादी पर अंकुश नहीं लगना चाहिए। क्या आईटी सेक्टर में ऐसे बदलाव नहीं होने चाहिए जो इस तरह के मामलों में कमेंट और दी जाने वाली गालियों पर अंकुश लगा सकें। आज सोशल मीडिया पर तमाम लोग अपने विचार ऐसे शेयर करते हैं कि मानों उनसे बड़ा विद्वान कोई और है ही नहीं, पर उनके विचारों से जाने अनजाने किसकी भावना आहत होती है, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। हम इनके विचार तो नहीं बदल सकते लेकिन आईटी में कुछ बदलाव लाकर कुछ अंकुश तो लगाया ही जा सकता है। इसके साथ लोगों को यह भी सोचना होगा कि उनकी एक बात किसी की जान लेने का कारण भी बन सकती है तो जो भी लिखें सोच समझकर और बात की सही जानकारी होने के बाद ही लिखें।