खास बातें-
- बदायूं में कभी जीत का सेहरा नहीं बंधवा पाया ‘हाथी‘
- हर बार बसपा को दूसरे या तीसरे स्थान पर ही करना पड़ा संतोष
- पिछले चुनाव में था सपा से समझौता, तब धर्मेंद्र यादव लड़े थे चुनाव
- इस बार पार्टी ने मुस्लिम खां को बनाया प्रत्याशी
सब की बात न्यूज
बदायूं। वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करके प्रदेश में सत्तारूढ़ होने वाली बहुजन समाज पार्टी बदायूं में लोकसभा चुनाव में कभी जीत हासिल नहीं कर पाई। हर बार बसपा प्रत्याशी कभी दूसरे तो कभी तीसरे नंबर पर रहा। हालांकि पार्टी ने हमेशा जातिगत आंकड़ों के आधार पर प्रत्याशी को उतारा, मगर मतदाताओं ने उसे गले नहीं लगाया। पिछले चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन होने और सीट सपा के खाते में जाने के कारण बसपा का प्रत्याशी ही मैदान में नही था तो इस बार पार्टी को मुश्किल से मुस्लिम खां के रूप में एक प्रत्याशी मिल पाया। ऐसे में चर्चा है कि क्या मुस्लिम दमदारी से सपा और भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ पाऐंगे या फिर बसपा किसी एक की 'बी' पार्टी बनकर रह जाएगी।
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विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती रही बसपा
बदायूं। बसपा सुप्रीमो मायावती जिले की सुरक्षित सीट रही बिल्सी से 1996 में हुआ विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं, हालांकि उन्होंने बाद में यह सीट छोड़ दी थी। वह जिले की हर स्थिति से वाकिफ भी रहीं हैं। परंपरागत वोट के सहारे बसपा ने विधानसभा चुनाव में तो कई बार बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वह वोट लोकसभा चुनाव में बसपा को कभी नहीं मिल सका। वर्ष 1996 में बसपा बदायूं संसदीय चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। इस चुनाव में सपा के सलीम शेरवानी को 198065 तथा बसपा के ब्रजपाल सिंह शाक्य को 152878 वोट मिले थे। ब्रजपाल दूसरे नबंर पर रहे थे। इसके बाद 1998 के चुनाव में बसपा तीसरे नंबर पर खिसक गई। इसमें सपा के सलीम शेरवानी 264583 वोट पाकर पहले, भाजपा की शांतिदेवी 224925 वोट पाकर दूसरे तथा बसपा के ब्रजपाल 104718 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। 1999 में उपचुनाव हुआ तो भी यथास्थिति बरकरार रही। सपा के सलीम शेरवानी पहले, भाजपा की शांतिदेवी दूसरे तथा बसपा के ब्रजपाल तीसरे नंबर पर रहे। 2004 में प्रेमपाल सिंह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन वह भी तीसरा नंबर ही ला सके।
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2009 में सुधरी स्थिति, पर जीत फिर भी नहीं मिल सकी
बदायूं। वर्ष 2009 में बसपा की स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ। तब पार्टी ने बदायूं से डीपी यादव को मैदान में उतारा था। उनमें और सपा के धर्मेंद्र यादव में कांटे की टक्कर हुई लेकिन डीपी केवल 32543 वोटों से धर्मेंद्र से हार गए। 2014 के चुनाव में बसपा के अकमल खां तीसरे नबंर पर रहे। हालांकि उन्हें 156973 वोट मिले थे। साल 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन होने के कारण सीट सपा के खाते में चली गई थी जबकि इस बार सपा का कांग्रेस से गठबंधन है। बसपा ने इस बार पूर्व विधायक मुस्लिम खां को प्रत्याशी बनाया है।
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...तो किसका नुकसान करेंगे मुस्लिम
बदायूं। राजनीतिक गलियारों में सब अपने-अपने मुताबिक चर्चा कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि मुसलमान होने के नाते मुस्लिम खां सपा का नुकसान करेंगे तो कोई कह रहा है कि बसपा का जो वोट भाजपा के खाते में जाता वह अब मुस्लिम खां को मिलेगा। ऐसे में भाजपा को नुकसान होगा। खैर, चर्चा कुछ भी हो लेकिन यह जरूर है कि बसपा का प्रत्याशी किसी एक को प्रभावित तो जरूर करेगा। देखना यह है कि बसपा दमदारी से चुनाव लड़ेगी या फिर सपा-भाजपा में से किसी एक की 'बी' पार्टी बनकर रह जाएगी।