भाजपाः  आसान नहीं होगी जीत की राह... अपने ही अटका रहे 'रोड़े'

भाजपाः आसान नहीं होगी जीत की राह... अपने ही अटका रहे 'रोड़े'

अंदर की बात- 'सब की बात' के साथ

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खास बातें-

- हर बार लगती है टिकट के दावेदारों की लंबी लाइन, असंतुष्ट हर बार करते हैं अंदरूनी चोट

- एक वरिष्ठ पदाधिकारी और एक बड़े नेता भी नहीं चाहते कि प्रत्याशी चुनाव जीते

- दुर्विजय के चुनाव जीतने की स्थिति में अपनी राजनीति खत्म होने का अंदेशा

- एक विधानसभा में विधायक का विरोध, कुछ ही दिनों में दूसरी पार्टी की महिला नेता भाजपा में शामिल होकर संभाल सकती हैं क्षेत्र की कमान

- सजातीय नेता कर रहे विरोध ताकि उनकी आने वाले दिनों में जाति की राजनीति पर न पड़े असर

- एक विधानसभा में पूर्व जनप्रतिनिधि खींच रहे वर्तमान जनप्रतिनिधि की टांग

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विस्तृत खबर- 

बदायूं। ‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था...‘ ये लाइनें इस चुनाव में भाजपा पर ‌बिल्कुल सटीक बैठती दिखाई दे रही हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही जीत हासिल की हो लेकिन इसमें भी रोड़े अटकाने में कोई कसर भाजपाइयों ने नहीं छोड़ी थी। निकाय चुनाव भी भाजपा इसलिए हार गई कि प्रत्याशी को हरवाने में उतना जोर गैर दलों ने नहीं लगाया, जितना खुद भाजपा के कुछ नेताओं ने लगा दिया। ऐसे में इस बार भी भाजपा की जीत की राह आसान नही होगी। लोगों में चर्चा है कि इस बार भी पार्टी के कुछ नेता ही भाजपा प्रत्याशी की जीत की राह में कांटे बिछाने को तैयार हैं। आइये डालते हैं कुछ बिंदुओं पर नजर-

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1-

- जिला, प्रदेश और देश की  राजनीति में कभी हाशिये पर पहुंची भाजपा को जब से मोदी का सहारा मिला तब से नेताओं की बल्ले-बल्ले होनी शुरू हो गई। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के एक बार का कार्यकाल पूरा करने के बाद तो जैसे नेता भाजपा के टिकट को ही जीत की गारंटी मानने लगे। ऐसे में टिकट के दावेदारों की लंबी लाइनें भी भाजपा में लगने लगीं। निकाय चुनाव हो या विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव, सभी में टिकट के चाहने वालों की संख्या इतनी हो गई कि उनकी नाराजगी दूर करने में ही पार्टी को अपनी ताकत झोंकनी पड़ गई। इस बार के लोकसभा चुनाव की बात करें तो टिकट घोषित होने से पहले दावेदारों की लंबी लाइन थी लेकिन पार्टी ने दुर्विजय शाक्य को प्रत्याशी बनाकर सबको ठंडा कर दिया। ऐसे में जाहिर है कि टिकट की चाह रखने वालों के मन में कहीं न कहीं यह टीस जरूर होगी। (नीचे और पढ़ें) 


2-

- सूत्रों की मानें तो पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी नहीं चाहते कि दुर्विजय शाक्य यहां से चुनाव जीतें। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि कभी क्षेत्रीय अध्यक्ष के रूप में दुर्विजय शाक्य भी नहीं चाहते थे कि इन पदाधिकारी को वह ओहदा हासिल हो, जिस पर वह आज हैं। इसके अलावा यह पदाधिकारी एक स्थानीय नेता को यहां से टिकट दिलाने की जुगत में थे, लेकिन हाईकमान स्तर से बात नहीं बनी। इन पदाधिकारी के साथ एक बड़े स्तर के नेता भी थे जो उस स्थानीय नेता को टिकट दिलाना चाहते थे। चूंकि इन पदाधिकारी और बड़े नेता का भी पार्टी में खासा दखल है जो भाजपा को मुश्किल पैदा करेगा।  (नीचे और पढ़ें)


3-

- पार्टी के कुछ अन्य पदाधिकारी व जनप्रतिनिधि नहीं चाहते कि कोई बाहर का व्यक्ति आकर उन पर 'राज' करे। ये पदाधिकारी व नेता जानते हैं कि यदि दुर्विजय चुनाव जीतते हैं तो कई की राजनीति यहां से खत्म हो जाएगी। क्योंकि दुर्विजय संघ के आदमी होने के कारण पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी हैं। इन पदाधिकारियों और नेताओं की मंशा के मुताबिक यदि वह चुनाव हार भी जाते हैं तो क्षेत्रीय अध्यक्ष होकर वह इन पर भारी ही रहेंगे और इस दशा में ये विरोधी अंदर ही अंदर उनकी काट करने में लगे हैं लेकिन बाहर से अपने होने का दिखावा कर रहे हैं। (नीचे और पढ़ें)


4-

जिले की एक विधानसभा क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भले ही मजबूरी में सपाई चोला ओढ़े हों लेकिन वह अब भाजपाई हो चुके हैं। ऐसे में यदि इस विधानसभा में वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी होती है तो सारा क्रेडिट इन सपाई जनप्रतिनिधि के खाते में जाएगा और इसी विधानसभा के एक पूर्व जनप्रतिनिधि ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि क्रेडिट दूसरे के खाते में जाए। लोगों का कहना है कि यह फैक्टर इस विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी को नुकसान पहुंचा सकता है।

5-

- भाजपा प्रत्याशी के साथ जो भीड़ उनके काफिलों में नजर आ रही है, उनमें अधिकांश लोग उनकी कर्मस्थली यानी बरेली के हैं। लोगों में चर्चा है कि जहां भाजपा प्रत्याशी सभा आदि करने जाते हैं उनमें से अधिकांश कुर्सियां उनके यही सपोर्टर घेरते हैं। यहां वोटर यानी पब्लिक न के बराबर ही रहती है। इसके अलावा इस काफिले में जो एक लग्जरी गाड़ी घूम रही है वह भी बरेली के एक नेता द्वारा सहयोग के रूप में उपहार स्वरूप दी गई है। 

6-

- इसके अलावा सजातीय नेता जो पार्टी में किसी न किसी रूप में मौजूद हैं, वे भी नहीं चाहते कि उनकी जाति की राजनीति पर कोई दूसरा सवार हो जाए। यदि ऐसा होता है तो जाहिर है कि उनकी पूछ कम होगी। ऐसे में ये नेता भी अंदर ही अंदर काट कर रहे हैं। इससे इतर, एक विधानसभा क्षेत्र में वहां के ही विधायक का विरोध अन्य जातियों के लोग कर रहे हैं, जिस कारण उनकी भाजपा से भी दूरी बन रही है। ऐसे में चर्चा है कि इस विधानसभा की नाराज जनता को साधने के लिए यहां की कमान एक ऐसी महिला नेता को दी जा सकती है जो दूसरी पार्टी से विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं। माना जा रहा है कि कुछ दिनों में ये महिला नेता भाजपा ज्वाइन भी कर सकती हैं। 

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अंत में जनता सर्वोपरि-

" हमारे और आपके विचारों और जानकारी में भिन्नता हो सकती है। इसलिए हम चाहते हैं कि आप इन बिंदुओं को पढ़कर नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी राय जरूर दें। यदि कुछ और कहना चाहते हों या इन बिंदुओं पर असहमति हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवगत कराएं ताकि हमें भी जानकारी हो सके कि जनता क्या चाहती है। ऐसे में हम आपकी राय को भी अपनी आने वाले खबरों में शामिल कर सकेंगे। हमें नीचे दी गई आईडी पर ईमेल भी कर सकते हैं "-

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  • user by Sunil kumar

    Bdn ke neta harami hain

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  • user by अनिकेत साहू

    पूरा बदायूं का मीडिया इस मामले में चुप्पी साधे बैठा है। अरे बेगैरत पत्रकारों दारू खरीदकर पी लो। मुफ्त की लेकर ज्योति बाबू के खिलाफ लिख भी न पा रए तो डूब जाओ चुलू भर पानी में। अमर उजाला दैनिक जागरण और हिंदुस्तान के रिपोर्टर बिकाऊ है। दारू के एक quater में बिक जाते है। पोर्टल वाले वैसे तो हगने मूतने की खबर तक चला देते है, लेकीन यहां किसी की हिम्मत नहीं हो रहे। साले बिकाऊ पत्रकार।

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  • user by संजीव कुमार

    भाजपा में ऐसे ही भरे हैं।

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