ये 'अपनापन' यूं ही या फिर सियासी...राजनीति के गलियारों में चर्चा में रही इन दोनों नेताओं की दुश्मनी
कभी अपनी दुश्मनी के लिए चर्चा में रहे थे पूर्व मंत्री आबिद रजा और बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव
कांग्रेस में शामिल होते वक्त आबिद रजा ने सपा को 'लिमिटेड कंपनी' तक बता डाला था
काफी समय बाद अब फिर दिखाई दिए एक साथ, चर्चा ये कि 2027 में मौका चूकना नहीं चाहते आबिद
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बदायूं। राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठ जाए, कहा नहीं जा सकता। यहां न कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और न स्थायी दुश्मन। सत्ता और कुर्सी की भूख दोस्ती और दुश्मनी दोनों के चेहरे वक्त के साथ बदलती रहती है। ऐसा ही कुछ एक बार फिर देखने में आया रविवार को, जब कभी आपसी रंजिश की वजह से चर्चा में रहे बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव और पूर्व विधायक आबिद रजा एक मंच पर दिखाई दिए। अब ये अपनापन सियासी है या इसके कुछ और मायने हैं, इसकी राजनीतिक गलियारों में खासी चर्चा है।
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अंडरग्राउंड केबल तो बस नाम की, वजह कुछ और थी अदावत की
बदायूं। बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव और पूर्व विधायक आबिद रजा की रंजिश की वजह बनी थी अंडरग्राउंड केबल पर आबिद रजा द्वारा किया गया विरोध, लेकिन अंदरखाने वजह कुछ और ही थी। बाद में दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई कि इसने सियासी दुश्मनी का रूप ले लिया था। आबिद रजा साल 2012 में भाजपा के महेश गुप्ता को हराकर सपा से विधायक बने थे। सपा में विधायक रहते ही कुछ ऐसा हुआ
जब आबिद और धर्मेद्र यादव में सियासी जंग छिड़ गई। जंग भी ऐसी वैसी नहीं, बल्कि दोनों में दुश्मनी जैसे हालात बन गए थे। 2017 के चुनाव में भी आबिद रजा सपा से टिकट के दावेदार थे। ये वह वक्त था जब सपा में आजम खां की तूती बोलती थी और आबिद आजम के खास माने जाते थे। आजम की सपा में जो हैसियत उस समय थी, उसके कारण ही आबिद धर्मेंद्र यादव के भारी विरोध के वाबजूद टिकट पाने में कामयाब हो गए थे लेकिन महेश गुप्ता से चुनाव हार गए।
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आबिद ने 2019 में थाम लिया था कांग्रेस का दामन
बदायूं। इस हार का ठीकरा जहां सपा की अंदरखाने की राजनीति पर फोड़ा गया वहीं इसका क्रेडिट धर्मेंद्र यादव ले उड़े। उनके विरोध को ही आबिद की हार का कारण माना गया। अंत में धर्मेद्र यादव आबिद रजा को सपा से बाहर कराने में कामयाब हो ही गए। इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आबिद ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और सपा के विरोध में जुट गए। इस लोकसभा चुनाव में धर्मेंद्र यादव को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा की संघमित्रा मौर्य चुनाव जीत गईं।
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2019 में मजबूरी वाली दोस्ती नहीं टिकी लंबी
बदायूं। कांग्रेस में राजनीतिक भविष्य न देख एक बार फिर आबिद ने सपा की ओर रुख करना चाहा। उनकी नजर अब 2022 के विधानसभा चुनाव पर थीं, लेकिन धर्मेंद्र यादव के कारण उनकी सपा में एंट्री ही बैन हो गई थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आजम खां ने बदायूं आकर धर्मेंद्र यादव और आबिद रजा को साथ बैठाकर सियासी दुश्मनी खत्म होने का ऐलान किया था लेकिन ऐसा ज्यादा दिनों तक हो नहीं सका। हालांकि उस समय भी ये मजबूरी वाली दोस्ती धर्मेंद्र यादव को नागवार गुजरी थी, पर लोकसभा चुनाव को देखते हुए उन्होंने उस वक्त इस दोस्ती को कुबूल करना ही मुनासिब समझा।
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आजम हाशिये पर आए तो नहीं चला आजम फैक्टर
बदायूं। इधर, 2022 आते-आते आजम खां सपा में हाशिये पर आ गए थे तो ऐसे में आजम फैक्टर भी नहीं चला और सपा ने टिकट रईस अहमद को थमा दिया। अब एक बार फिर धर्मेंद्र यादव और आबिद रजा की रार चरम पर आ गई। इसके कारण ही इस चुनाव में आबिद ने सपा का जमकर विरोध किया। हालांकि इस चुनाव में रईस अहमद की हार के कारण कुछ और रहे, लेकिन उनके हारने के बाद सारा क्रेडिट आबिद रजा खुद को देने में लगे रहे।
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लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला तो खुलकर किया विरोध
बदायूं। इसके बाद जब 2024 में लोकसभा चुनाव हुआ तो आबिद ने आंवला सीट से सपा से टिकट मांगा लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। ऐसे में एक बार फिर आबिद रजा सपा के विरोध में उतर आए और खुलकर सपा का विरोध कर दिया। खुद को मुस्लिम चेहरा साबित करने के लिए आबिद सपा के विरोध में चौपालें करने में जुट गए। इधर, जिले के कुछ सपा नेताओं ने धर्मेंद्र यादव के यहां से चुनाव लड़ने पर हारने के तमाम कारण अखिलेश यादव को गिनाकर उनका टिकट कटवाने में भी सफलता हासिल कर ली। इसके बाद सपा ने शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव को सपा प्रत्याशी बनाया। आबिद की मुस्लिमों में लोकप्रियता को देखते हुए शिवपाल यादव आबिद के आवास पर गए और उन्हें किसी तरह मना लिया। इसके बाद जो हुआ वह सबके सामने है।
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दोनों के साथ-साथ दिखने पर चर्चा का बाजार गर्म
बदायूं। तब से अब तक सांसद आदित्य यादव के लगभग हर कार्यक्रम में आबिद उनके साथ ही नजर आते हैं। पर, दो दिन पहले नगर पालिका द्वारा चलाई जा रही रसोई के माध्यम से हुए भंडारे में धर्मेंद्र यादव को मुख्य अतिथि बनाए जाने पर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गईं हैं। अब आबिद और धर्मेंद्र यादव का इस तरह एक मंच पर आना बस यूं ही है या फिर सियासी अपनापन, इसका राजनीतिक हल्के में अलग-अलग अंदाजा लगाया जा रहा है।
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...तो क्या 2027 का कोई 'कमिटमेंट'
बदायूं। माना जा रहा है कि आबिद रजा को साल 2027 में आने वाला विधानसभा चुनाव दिखाई दे रहा है। अब आजम खां का क्या हाल है, यह तो सबको पता है। वह वक्त अलग था जब धर्मेंद्र यादव को मुंह की खानी पड़ी थी कि जब उनके विरोध के बावजूद भी आबिद, आजम खां के कारण ही विधानसभा चुनाव में सपा से टिकट लेने में कामयाब हो गए थे। पर, अब बात अलग है। ऐसे में माना जा रहा है कि आबिद एक तरफ तो सांसद आदित्य यादव से नजदीकी रखकर अपना 2027 का टिकट पक्का कर रहे हैं तो दूसरी ओर वह ये भी नहीं चाहते कि अखिलेश यादव के भाई होने के कारण धर्मेंद्र यादव इसमें कोई रोड़ा अटकाएं। ऐसे में उन्हें धर्मेंद्र यादव के साथ सियासी अपनापन दिखाने में भी कोई गुरेज नजर नहीं आ रहा है।
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ये रहे 2024 में आबिद रजा द्वारा दिए गए कुछ बयान
- ''यहां तो सपा का मतलब लिमिटेड कंपनी।''--- 12 अप्रैल-2019 (कांग्रेस का दामन थामने के बाद मीडिया से बातचीत में)
- ''बगावत बहादुर करते हैं। साइकिल अब पैडल से नहीं पेट्रोल से चल रही है।'' ---- छह मार्च-2024 (सहसवान में हुई सेक्युलर महापंचायत में)
- ''सपा समझ रही है कि आखिर कहां जाएगा मुसलमान।'' ---- 16 मार्च-2024 (प्रेस जारी बयान में)
- ''आजम के लिए सपा का रवैया....जबरा मारे रोने न दे।'' ---- 19 मार्च-2024 (प्रेस जारी बयान में)
- ''सपा में सियासी यतीम हो चुका मुसलमान।'' ----22 मार्च-2024 (प्रेस को जारी बयान में)
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