दुर्विजय से 'दूर' हुई विजय, बदायूं में 'चमके' आदित्य

दुर्विजय से 'दूर' हुई विजय, बदायूं में 'चमके' आदित्य

बदायूं। साल 2019 के चुनाव में 28 साल बाद जीत हासिल करने वाली भाजपा 2024 में सपा से सीट हार बैठी। यहां सपा के आदित्य यादव ने भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य को करीब 34 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर सीट अपने नाम कर ली। 

पहले की बात करें तो बदायूं सीट पर भाजपा कभी कोई कमाल नहीं दिखा सकी। साल 1991 के बाद 2019 में करीब 28 साल बाद भाजपा ने यहां से दूसरी बात जीत हासिल की थी। साल 1991 में यहां से भाजपा के स्वामी चिन्मयानंद जीते थे तो पिछली बार के 2019 के चुनाव में संघमित्रा मौर्य ने जीत हासिल की, लेकिन 28 साल बाद मिली जीत को भाजपा 2024 में कायम नहीं रख सकी। भाजपा प्रत्याशी दुर्विजय सिंह शाक्य से विजय दूर हो गई और सपा के आदित्य यहां पहली बार चमक उठे।

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शुरुआती दौर में भाजपा ने बनाई बढ़त, फिर गंवाती गई

बदायूं। शुरुआती दौर में भाजपा ही बढ़त बनाती दिखी। हालांकि बीच-बीच में सपा के आदित्य यादव भी आगे हुए लेकिन यह बढ़त मामूली रही। इसके बाद जैसे जैसे मतगणना आगे बढ़ती गई, आदित्य यादव के वोटों का अंतर बढ़ता रहा और अंत में आकर उन्होंने जीत हासिल कर ली। 

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लोगों ने लिए थे चटखारे- 'अमित शाह कर गए थे दूरविजय'

बदायूं। भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में जब अमित शाह यहां इस्लामियां इंटर कॉलेज में जनसभा करने आए थे तो उन्होंने दुर्विजय सिंह शाक्य को हर बाद 'दूर्विजय' पुकारा था। इस बात पर लोगों ने जमकर मजाक भी बनाया था और दूर्विजय 'दूरविजय' कहकर जमकर खिल्ली उड़ाई थी। हालांकि यह केवल शाह के उच्चारण का दोष मात्र ही था।

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स्थानीय नेताओं की राजनीति बनी हार का कारण

बदायूं। भाजपा की हार का कारण यहां के स्थानीय नेताओं की गुटबाजी के अलावा यहां की राजनीति ही बनी। दरअसल,  दुर्विजय सिंह भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में तमाम स्थानीय नेता उनको जीतते हुए ही नहीं देखना चाहते थे। इसके पीछे इन नेताओं का मानना था कि यदि दुर्विजय यहां से जीत जाते हैं तो दुर्विजय का तो कद और बढ़ जाएगा लेकिन इन स्थानीय नेताओं का दबदबा लोकल राजनीति में कम हो जाएगा। भाजपा की इस हार के पीछे पार्टी के कई नेता और पदाधिकारी भी कारण बने, जिन्होंने पार्टी में रहते हुए भी उसे हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

एक नजरः अब तक के बदायूं लोकसभा क्षेत्र के सांसद

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1951ः चौधरी बदन सिंह, कांग्रेस

1957ः रघुवीर सहाय, कांग्रेस

1962ः ओंकार सिंह, भारतीय जनसंघ

1967ः ओंकार सिंह, भारतीय जनसंघ

1971ः करन स‌हिं यादव, कांग्रेस

1977ः ओंकार सिंह, भारतीय लोक दल

1980ः मो. असरार अहमद, कांग्रेस

1984ः सलीम इकबाल शेरवानी, कांग्रेस

1989ः शरद यादव, जनता दल

1991ः स्वामी चिन्मयानंद, भाजपा

1996ः सलीम शेरवानी, सपा

1998ः सलीम इकबाल शेरवानी, सपा

1999ः सलीम इकबाल शेरवानी, सपा

2004ः सलीम इकबाल शेरवानी, सपा

2009ः धर्मेंद्र यादव, सपा

2014ः धर्मेंद्र यादव, सपा

2019ः संघमित्रा मौर्य, भाजपा

2024ः आदित्य यादव, सपा

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  • user by उमेश कुमार

    Sahi kaha

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  • user by सत्येंद्र मिश्र

    इन दोनों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती। पुलिस ने एक करोड़ रुपए लिया है। अमर उजाला दैनिक जागरण और हिंदुस्तान अखबार को दो दो लाख गया है। विधायक महेश कुमार गुप्ता भी दलाली खाए है। वो बचा रहा है ज्योति मंदिरता को। बदायूं के नेता और media वाले दलाल है। ये साले अपनी मा की दलाली भी खा सकते है। महेश कुमार गुप्ता तो सत्ता का दलाल है।

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